Thursday, August 5, 2010

दिल चाहता है

फिर उन लम्हों में जीने को दिल चाहता है
फिर उन आँखों से पीने को दिल चाहता है
सीने में कमबख्त ये दर्द ही है कुछ ऐसा
की इसी दर्द में मर जाने को दिल चाहता है

रिवाजों की दीवारें तोड़ने को दिल चाहता है
रस्मो से मुह मोड़ने को दिल चाहता है
ये कायनात तो बड़ी छोटी सी चीज़ है,अब तो
खुद खुदा से ही लड़ने को दिल चाहता है

क़र्ज़ चुकाने को दिल चाहता है
फ़र्ज़ निभाने को दिल चाहता है
हैं माँ-बाप के जो सर पे लकीरें
हमेशा के लिए मिटने को दिल चाहता है

गुमशुदगी हटाने को दिल चाहता है
कामयाबी पाने को दिल चाहता है
थे इन आँखों में सपने कुछ ऐसे
के फिर सपने सजाने को दिल चाहता है

कहानियों में जाने को दिल चाहता है
परियों को पाने को दिल चाहता है
न जाने क्यों है हकीक़त इतनी ज़ालिम
फ़साने को हकीक़त बनाने को दिल चाहता है

सितारों से मिलने को दिल चाहता है
फूलों सा खिलने को दिल चाहता है
है उस आफ़ताब का नूर ही कुछ ऐसा
उसकी ही माफिक जलने को दिल चाहता है..

2 comments:

  1. bahut achi kavita hai....
    apko gale lagane ko "dil cahta hai".....
    mujhe hindi mein type karna nahi aata......
    par hindi mein type karne ko "dil cahta hai"...

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  2. hehe..thr's an option at top on the right side when u write a blog..thnx anyways..tum sabse milne ko "dil chahta hai"..

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